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Thursday 21 May 2015

ब्राह्मणों का गोत्र ज्ञान ।। Brahman Samaj Silvassa.

 सभी विप्र बंधुओं को सादर नमन ।।

मित्रों, आइये आज हम ब्राह्मणों के सभी गोत्रों के विषय में जानने का प्रयास करें ।।

गोत्र ज्ञान ....................................

मित्रों, उन ११५ ऋषियों के नाम, जो कि हमारा गोत्र भी है.......

१.अत्रि गोत्र,
२.भृगुगोत्र,
३.आंगिरस गोत्र,
४.मुद्गल गोत्र,
५.पातंजलि गोत्र,
६.कौशिक गोत्र,
७.मरीच गोत्र,
८.च्यवन गोत्र,
९.पुलह गोत्र,
१०.आष्टिषेण गोत्र,
११.उत्पत्ति शाखा,
१२.गौतम गोत्र,
१३.वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ)
पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र !!!
१४.वात्स्यायन गोत्र,
१५.बुधायन गोत्र,
१६.माध्यन्दिनी गोत्र,
१७.अज गोत्र,
१८.वामदेव गोत्र,
१९.शांकृत्य गोत्र,
२०.आप्लवान गोत्र,
२१.सौकालीन गोत्र,
२२.सोपायन गोत्र,
२३.गर्ग गोत्र,
२४.सोपर्णि गोत्र,
२५.शाखा,
२६.मैत्रेय गोत्र,
२७.पराशर गोत्र,
२८.अंगिरा गोत्र,
२९.क्रतु गोत्र,
३०.अधमर्षण गोत्र,
३१.बुधायन गोत्र,
३२.आष्टायन कौशिक गोत्र,
३३.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, ३४.कौण्डिन्य गोत्र,
३५.मित्रवरुण गोत्र,
३६.कपिल गोत्र,
३७.शक्ति गोत्र,
३८.पौलस्त्य गोत्र,
३९.दक्ष गोत्र,
४०.सांख्यायन कौशिक गोत्र, ४१.जमदग्नि गोत्र,
४२.कृष्णात्रेय गोत्र,
४३.भार्गव गोत्र,
४४.हारीत गोत्र,
४५.धनञ्जय गोत्र,
४६.पाराशर गोत्र,
४७.आत्रेय गोत्र,
४८.पुलस्त्य गोत्र,
४९.भारद्वाज गोत्र,
५०.कुत्स गोत्र,
५१.शांडिल्य गोत्र,
५२.भरद्वाज गोत्र,
५३.कौत्स गोत्र,
५४.कर्दम गोत्र,
५५.पाणिनि गोत्र,
५६.वत्स गोत्र,
५७.विश्वामित्र गोत्र,
५८.अगस्त्य गोत्र,
५९.कुश गोत्र,
६०.जमदग्नि कौशिक गोत्र, ६१.कुशिक गोत्र,
६२. देवराज गोत्र,
६३.धृत कौशिक गोत्र,
६४.किंडव गोत्र,
६५.कर्ण गोत्र,
६६.जातुकर्ण गोत्र,
६७.काश्यप गोत्र,
६८.गोभिल गोत्र,
६९.कश्यप गोत्र,
७०.सुनक गोत्र,
७१.शाखाएं गोत्र,
७२.कल्पिष गोत्र,
७३.मनु गोत्र,
७४.माण्डब्य गोत्र,
७५.अम्बरीष गोत्र,
७६.उपलभ्य गोत्र,
७७.व्याघ्रपाद गोत्र,
७८.जावाल गोत्र,
७९.धौम्य गोत्र,
८०.यागवल्क्य गोत्र,
८१.और्व गोत्र,
८२.दृढ़ गोत्र,
८३.उद्वाह गोत्र,
८४.रोहित गोत्र,
८५.सुपर्ण गोत्र,
८६.गालिब गोत्र,
८७.वशिष्ठ गोत्र,
८८.मार्कण्डेय गोत्र,
८९.अनावृक गोत्र,
९०.आपस्तम्ब गोत्र,
९१.उत्पत्ति शाखा गोत्र,
९२.यास्क गोत्र,
९३.वीतहब्य गोत्र,
९४.वासुकि गोत्र,
९५.दालभ्य गोत्र,
९६.आयास्य गोत्र,
९७.लौंगाक्षि गोत्र,
९८.चित्र गोत्र,
९९.विष्णु गोत्र,
१००.शौनक गोत्र,
१०१.पंचशाखा गोत्र,
१०२.सावर्णि गोत्र,
१०३.कात्यायन गोत्र,
१०४.कंचन गोत्र,
१०५.अलम्पायन गोत्र,
१०६.अव्यय गोत्र,
१०७.विल्च गोत्र,
१०८.शांकल्य गोत्र,
१०९.उद्दालक गोत्र,
११०.जैमिनी गोत्र,
१११.उपमन्यु गोत्र,
११२.उतथ्य गोत्र,
११३.आसुरि गोत्र,
११४.अनूप गोत्र,
११५.आश्वलायन गोत्र !!!!!

कुल संख्या १०८. ही है, लेकिन इनकी छोटी-छोटी ७ शाखा और हुई है ! इस प्रकार कुल मिलाकर इनकी पुरी संख्या ११५ है !

॥जयतु संस्कृतम् ॥ जयतु ब्राह्मणम् ।। जय परशुराम ।।

Sunday 26 April 2015

वैदिक ब्राह्मणों की सेवा ही सच्चा धर्म. Brahman Samaj Silvassa.

जय श्रीमन्नारायण,

मुमुक्षवो घोररूपान्हित्वा भूतपतीनथ !! 
नारायणकलाः शान्ता भजन्ति ह्यनसूयवः !! 26 !!(भा.पू.स्क-१.अ-२.) Swami Shri Dhananjay Ji Maharaj

अर्थ:- जो लोग इस संसार सागर से पार जाना चाहते हैं, वे यद्धपि किसी की निंदा तो नहीं करते, न किसी में दोष ही देखते हैं, फिर भी घोररूप - तमोगुणी - रजोगुणी भैरवादि भूतपतियों की उपासना न करके सत्त्वगुणी विष्णुभगवान् और उनके अंश -----कलास्वरूपों का ही पूजन करते हैं ।।26।। क्योंकि --

वासुदेवपरा वेदा वासुदेवपरा मखाः !! 
वासुदेवपरा योग वासुदेवपराः क्रियाः !! 28 !!
वासुदेवपरं ज्ञानं वासुदेवपरं तपः !! 
वासुदेवपरो धर्मो वासुदेवपरा गतिः !! 29 !!

अर्थ:- वेदों का तात्पर्य श्रीकृष्ण में ही है। यज्ञों के उद्देश्य नारायण ही हैं। योग श्रीकृष्ण के लिए ही किये जाते हैं और समस्त कर्मों की परिसमाप्ति भी नारायण में ही है।।28।। ज्ञान से ब्रम्हस्वरूप नारायण की ही प्राप्ति होती है। तपस्या नारायण की प्रसन्नता के लिए ही की जाती हैं। नारायण के लिए ही धर्मों का अनुष्ठान होता है और सब गतियाँ नारायण में ही समा जाती हैं।।29।।

रजस्तमःप्रकृतयः समशीला भजन्ति वै !! पितृभूतप्रजेशादीन्श्रियैश्वर्यप्रजेप्सवः !! 27 !!

अर्थ:- परन्तु जिनका स्वाभाव रजोगुणी अथवा तमोगुणी है, वे धन, ऐश्वर्य और संतान की कामना से भूत, पितर और प्रजापतियों की उपासना करते हैं; क्योंकि इन लोगों का स्वभाव उन (भूतादि)- से मिलता-जुलता होता है ।।27।।

लेकिन जो ब्राह्मण सदैव से नारायण तथा शिवादि वैदिक देवताओं के पूजक हैं, उन ब्राह्मणों को मेरा सादर नमन है ! हे ब्राह्मणों, आपको मेरा नमस्कार है ! हे भूदेवों, आपको मेरा नमस्कार है ! हे विद्वान ब्राह्मणों, आपको मेरा कोटि-कोटि नमस्कार है ! आप अपने यजमानों के निमित्त क्या कुछ नहीं करते ?
 
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्‌ ।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्‌ ॥(गीता.अ.३.)

अर्थ : सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्मसमुदाय को तू वेद से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है॥14-15॥


हे ब्राह्मणों, आप यज्ञों के कर्ता हो, इस नाते आप ही इस सृष्टि के सच्चे धारक हो, संचालक हो, अत: आपको मेरा कोटि-कोटि नमन है !!

युन्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे ! शोणा धृष्णु नृवाहासा !!(यजुर्वेद.अ.२३.मन्त्र-६.)


अर्थ:- जिस प्रकार एक कुशल सारथी, अपने रथ मे जूते घोड़ों को, कुशलता पूर्वक नियंत्रित रखता है ! ठीक उसी प्रकार, देवताओं तक हवी पहुँचे, इस बात का पूरा ध्यान कुशल ऋत्विज (ब्राह्मण) रखते हैं ! शोणा (अग्नि) धृष्णु (अतुलनीय फलदायी मन्त्र) निश्चित फल ही मिले, और कार्यसिद्धि हो ही, इस बात का कुशल ब्राह्मण सदैव ध्यान रखता है !!!!

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ऐसे ज्ञानी विद्वान ब्राह्मणों को मेरा कोटि-कोटि नमन !!!

!!!! नमों नारायण !!!!

Saturday 25 April 2015

Brahman Samaj, Silvassa.